Sadhana Shahi

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रोजगार आदमी की पहचान ( कहानी )प्रतियोगिता हेतु29-Feb-2024

दिनांक- 29.0 2. 2024 दिवस- गुरुवार प्रदत्त विषय- रोजगार आदमी की पहचान( कहानी) प्रतियोगिता हेतु

एक ज़माना था जब हमारी पहचान हमारे कुल, वंश, गोत्र, जाति, धर्म, समाज, भाषा, प्रांत इत्यादि से होती थी। किंतु आज का दौर पूरी तरह परिवर्तित हो चुका है- आज आदमी की पहचान रोजगार से होती है, जाति, धर्म, मज़हब से नहीं। उसके कर्म और कंधों के भार से होती है, उसके कपड़े लत्ते ठाट-बाट से नहीं।

अतः आज के समय की सबसे बड़ी मांँग हो गई है कि मनुष्य अपने बीते हुए कल, आज और आने वाले कल के बारे में अच्छी तरह से सोच समझकर ही रोज़गार का चयन करें। क्योंकि आज का समाज जन्म प्रदान नहीं कर्म प्रधान हो गया है। कैसे? इसे एक छोटी सी कहानी से समझते हैं।

पवन और दीपक पड़ोसी थे। पवन ऊँची जाति से था तथा दीपक अन्य पिछड़ी जाति से था। पवन के पिता के अच्छी-खासी नौकरी थी,वह एक पैसे वाले घर का बच्चा था। जबकि, दीपक के पिता बहुत ग़रीब थे वह अपने बड़े भाई के यहांँ रहते थे और उन्हीं की दया पर उनका घर गृहस्थी चलता था।

दोनों एक ही मिशनरी स्कूल तथा एक ही कक्षा में पढ़ते थे। किंतु दोनों के रहन-सहन, चाल- चलन में बहुत अंतर था।

पवन की फीस हमेशा समय पर जमा होती थी। उसके पास किताबें, पेंसिल, रबर इत्यादि सब कुछ इफ़रात भरा रहता था। जबकि दीपक की फ़ीस समय पर नहीं जमा हो पाती थी। वह पवन की जो चीज़ें पुरानी हो जाती थीं उनको लेकर ख़ुशी- ख़ुशी अपना कार्य करता था। जब वह कक्षा चार में पहुंँचा तब उसके पिता उसे स्कूल से निकाल कर किसी सस्ते स्कूल में डालने का मन बनाए। क्योंकि वह उस स्कूल की फीस देने में सक्षम नहीं थे।

इसके बाबत जब वो विद्यालय के प्रधानाचार्य से मिले तो प्रधानाचार्य ने उन्हें ऐसा करने से मना किया और कहा आप बच्चे के खर्चे का इंतज़ाम करिए मैं इसकी पूरी फ़ीस माफ़ कर देता हूंँ। यह अच्छा बच्चा है और मैं चाहता हूंँ कि यह अच्छे से पढ़ाई करे।

उसके बाद वह उस स्कूल में 12वीं कक्षा तक पढ़ा। उसका एक भी पैसा फ़ीस नहीं लगा और पवन का जो भी स्वेटर, जूता, ब्लेजर इत्यादि हल्का सा पुराना हो जाता वह पवन की मम्मी दीपक को दे देतीं और दीपक खुशी-खुशी उसी से अपना काम चला लेता था।

पवन कक्षा दसवीं से ही ग़लत संगत में पड़ गया था। उसकी पढ़ाई-लिखाई में बिल्कुल भी मन नहीं लगता था। जैसे तैसे उसने 12वीं पास किया और कई बिजनेस किया और डुबाया। जब तक पिताजी नौकरी में रहे तब तक हर दो वर्ष बाद वह बिजनेस करता और डुबाता। बहुत पैसे बर्बाद किया। उसने और इधर दीपक भरने के बाद लोन लेकर के बीटेक किया बीटेक करने के बाद एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में पूछे ऑर्डर पर नौकरी ज्वाइन किया अच्छी शादी हुई फ्लैग गाड़ी सब कुछ ले लिया।

पवन आवारा की तरह घूमना, नशा- पत्ती करना घर में लड़ाई-झगड़ा, मार-पीट बस यही सब करता रहा। शादी हुई, शादी के बाद भी उसमें कोई सुधार नहीं हुआ बच्चा हुआ,फिर भी कोई सुधार नहीं आज भी वह अपने मांँ-बाप पर ही बोझ बना हुआ है। जबकि दीपक समाज में एक अलग पहचान, एक अलग इमेज के साथ मान- सम्मान से अपनी ज़िंदगी जी रहा है।और इस तरह पवन अपने क्रिया-कलापों से अपनी नकारात्मक पहचान बनाया हुआ है। जबकि दीपक अपने सकारात्मक क्रिया-कलापों,और अपने रोज़गार से सकारात्मक छवि के साथ अपनी ज़िंदगी को आगे बढ़ा रहा है।

साधना शाही, वाराणसी

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5 Comments

Gunjan Kamal

01-Mar-2024 11:09 PM

शानदार

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Tabassum

01-Mar-2024 03:37 PM

👍👍

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Mohammed urooj khan

29-Feb-2024 03:58 PM

👌🏾👌🏾👌🏾

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